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तूफान (नाटक)

शेक्सपियर, रांगेय राघव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10119

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Tempest का हिन्दी रूपान्तर.....

तूफ़ान (टैम्पैस्ट) एक सुखान्त नाटक है। यह शेक्सपियर की अन्तिम रचना है। इसके बाद उसने कोई नाटक नहीं लिखा। कहते हैं वह अपना यह नाटक-काव्य-साहित्य छोड़कर अपने गाँव में शान्ति से रहने चला गया था और अपने को अन्त में असफल कह गया था। इस नाटक में हमें प्रौस्पैरो के रूप में जीवन से ऊबे हुए व्यक्ति के दर्शन मिलते हैं।

प्रौस्पैरो एक ड्यूक था, जिसकी गद्दी को उसके नीच भाई ने हड़प लिया था, क्योंकि प्रौस्पैरो ने अपना सारा काम उस पर डालकर अपने को अध्ययन-कक्ष में सीमित कर लिया था। उसी ने प्रौस्पैरो को नेपिल्स के राजा की मदद से समुद्र में बहा दिया। प्रौस्पैरो बड़ा विद्वान् और जादूगर था। वह अपनी तीन साल की बच्ची को लेकर एक द्वीप पर जा लगा। वहाँ साईकोरैक्स नामक डायन का बेटा कैलीबन उसे मिला। साइकोरैक्स ने एरियल नामक एक वायव्य आत्मा को एक पेड़ में कील रखा था, और उसे वहीं छोड़कर मर गई थी। प्रौस्पैरो ने एरियल को अपनी जादूगरी से छुड़ाकर अपना दास बनाया और कैलीबन को, जिसे वह जड़ धरती कहता था, उसने भाषा सिखाई, सभ्य बनाना चाहा। पर पशु कैलीबन पशु ही रहा। उसने जादूगर की बेटी मिरैण्डा से बलात्कार करने की चेष्टा की। तब जादूगर ने उसे चट्टान में बन्दी कर दिया।

एक दिन एक जहाज़ में नेपिल्स का राजा, जादूगर का भाई और नेपिल्स का राजकुमार तथा अन्य लोग समुद्र में आ रहे हैं। तब जादूगर एरियल को आज्ञा देता है, जो तूफ़ान उठाता है और सबको सुरक्षित तीर पर ला पहुँचाता है। उसी दिन की कहानी है कि पापी पाप स्वीकार करते हैं, जादूगर की बेटी नेपिल्स के राजकुमार की पत्नी बनती है, जादूगर अपना जादू का डण्डा तोड़कर कहता है कि उसके लिए एक ही सुख का रास्ता है-प्रार्थना ज्ञान नहीं-प्रार्थना; वह जड़ कैलीबन तथा पापियों की नीचता नहीं छुड़ा सका। वह निराश है।

रूपक का मानदण्ड काफ़ी मुखर है। शेक्सपियर यहाँ कहते हुए दिखता है कि केवल उदात्त विचार इस धरती के पाप नहीं मिटा सकते। नाटक वैसे बड़ा विचित्र है, जो अनुभूति को विस्मयजनक आनन्द प्रदान करता है। हम इसे पढ़ते समय एक विचित्र भूमि में जा पहुँचते हैं।

यद्यपि तूफ़ान (टैम्पैस्ट) शेक्सपियर की प्रसिद्ध रचना मानी जाती है, फिर भी उसे विद्वान लोग नाटकीयता के दृष्टिकोण से सफल नहीं मानते। इस कथन में सत्य भी है, क्योंकि इसमें काव्य-रूपकत्व अधिक है। कथा में गति नहीं ही-सी है और एरियल का चित्रण इतना चमत्कारपूर्ण है कि उसमें किसी प्रकार का द्वन्द्व पैदा नहीं होता। यही कारण है कि यह नाटक शेक्सपियर ने स्वयं रंगमंच पर असफल होते देखा। क्या बीता होगा उसके हृदय पर? उसने अनुभव किया कि उसकी शक्ति का क्षय हो चुका था। वह जिस शिखर पर पहुँच चुका था, वहाँ से यह उतार ही था।

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